Saturday 26 September 2009

बालको.....ये तूने क्या किया.............


२३ सितम्बर २००९, दोपहर के ०३:२७ बजे.....मैं कोरबा में था.....वैसे तो कोरबा आने का पहले से कोई प्रोग्राम नहीं था......लेकिन ना जाने क्यों एक काम जो काफी दिन से लटका हुआ था, उसे पूरा करने की इच्छा हुयी और मैं एक दिन की छुट्टी लेकर कोरबा आ गया था......सुबह काम निपटाकर खाली होन के बाद कोरबा के पुराने पत्रकारों से मिलने की इच्छा हुयी......सबसे पहले मैं कमलेश यादव(संपादक , सीसीएन अभीतक) के दफ्तर पहुँचा.....यहां कुछ बातें चल ही रही थी कि मौसम खराब हो गया....हम चाय की चुस्कियां लेते हुए पुराने दिनोंको याद करते हुए नये के बारे में विचार कर रहे थे......इतनी देर में कमलेश यादव का फोन बजा और खबर आयी की बालको की एक चिमनी गिर गयी है.....वैसे ये कोई नयी बात नहीं थी....जब भी कोरबा में आंधी और तुफान आता है राख और धूल के गुबार सब कुछ अपने भीतर समेट लेते हैं.....इस बार भी हमने यही समझा की कोई मजाक कर रहा है....लेकिन इसके दो मिनट बाद ही मेरा भी मोबाइल बज उठा और वही बात दोहरायी गयी.....आखिर हम ठहरे खबरनवीस....लिहाजा मजाक की भी छानबीन करनी पड़ती है.....मैने बालको प्लांट मे काम करने वाले अपने एक दोस्त को फोन लगाया और खबर के बारे में पूछा......उसने जो कुछ भी बताया, उस पर ।यकीन करना काफी मुश्किल था........वो स्पाट पर खड़ा था और उसके हिसाब से कम से कम दो सौ लोगों की मलबे में दबने की खबर थी......खबर की पुष्टि होते ही कोरबा में हाहाकार मच गया.....मैं छुट्टी पर था...लेकिन एक पत्रकार का मन भला कहां शान्त रह सकता है...लिहाजा कमलेश यादव के साथ मैं भी हो लिया......रास्ते भर हम इसी बारे में चर्चा करते रहे और तकरीबन २० मिनट बाद जब हम घटना स्थल पर पहुँते तो हमारे भी होश उड़ गये...........२०० मीटर उंची निर्माणाधीन चिमनी जमींदोज हो चुकी थी और उसके मलबे में गाजर मूली की तरह लाशें दबी हुयी थी...........


वैसे तो किसी को पता नहीं था कि मैं कोरबा मे हूँ...लेकिन कैरियर के दो साल कोरबा मे बिताने के बाद आज भी लोग बड़ी खबरों के लिए मुझे याद कर ही लेते हैं.....इस बार भी एसा ही हो रहा था.....स्पाट पर पहुँचने के बाद मुझे अपने चैनल का रिपोर्टर कहीं नजर नहीं आया ,लिहाजा मैने डेस्क पर फोन करके मामले की जानकारी दी और मजदूरों के मरने की पुष्टि की.....इसके बाद फिर डेस्क ने भी मुझे आराम नहीं करने दिया.....आया तो था मैं छुट्टी मनाने लेकिन यहां भी काम ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा........


खैर मुछे लगा की अगर मैं आज कोरबा में नहीं होता तो मुझे काफी अफसोस होता.......हिन्दुस्तान की औद्योगिक दुर्घटनाओँ के इतिहास की ये सबसे बड़ी और दुःखद घटना थी......जिसे मैंने अपनी आंखों से देखा और महसूस किया......


बालको अपनी १२०० मेगावाट के विस्तार परियोजना पर काम कर रहा था और इसका ग्लोबल टेंडर उसने चाइना की कंपनी सेपको को दे रखा सेपको ने भी चिमनी बनाने का काम देशी कंपनी ग्द्क्ल को पेटी कांट्रेक्ट के रुप में सौंप दिया था.....इस संयंत्र में २७५ मीटर उंचाई की दो चिमनियां बननी थी...दोनों चिमनियां २०० मीटर की उँचाई तक पूरी हो चुकी थी.....घटना के दिन भी चिमनी बनाने का काम चल रहा था और इस काम में १५० मजदूर लगे हुए थे....चिमनी गिरने से कुछ मिनट पहले ही जोरदार बारिश शुरु हो गयी थी.....बारिश से बचने के लिए सभी मजदूर पास में ही बने स्टोर रुम और कैंटीन मे चले गये थे......लेकिन किसे पता था की वो मौत के मुंह में जा रहे हैं..........थोड़ी ही देर बाद भुस्स की एक आवाज आयी और फिर एसा लगा मानों भूकम्प आ गया हो......जो बच गये उनके हलक सूख गये मानों वो गूंगे हों और जो चपेट मे आ गये उनमें से कोई भी जिन्दा नहीं बच सका.....पहले दिन किये गये राहत कार्य में कुल २२ लाशें मिली......घटना के बाद वहां पर ना तो कोई चाइनीज था और ना ही कोई जीडीसीएल का अधिकारी........लेकिन ना जाने कहां से मजदूरों को जीड़ीसीएल का एक कर्मचारी दिख गया, वो तेजी से बाहर की तरफ भाग रहा था, फिर क्या था...अपनों को को चुके मजदूरों को कर्मचारी की ये हरकर बर्दास्त नहीं हुयी और वो भीड़ का शिकार होगया......मरने वालों की संख्या मे एक और इजाफा हो गया.......


आज मैं घटना के चार दिन बीत जाने के बाद ये ब्लाग लिख रहा हूँ, इस दौरान ४४ लोगों के मौत की पुष्टी हो चुकी है जबकि १४ लापता की सूची में डाल दिये गये हैं......कुल मिलाकर अभी भी राहत कार्य जारी है और ये संख्या शतक तक पहुँचने का माद्दा रखती है......वैसे भी बालको की मृतकों के परिवार को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा के साथ ही मृतकों की संख्या बढ़ाने मे काफी कंजूसी बरती जा रही है.......


आपको ये भी बतादें की जिस जगह पर बाल्को अपने १२०० मेगावाट का पावर प्लांट बना रहा है, वहां की इन्वायरमेंट क्लीयरेंस अभी तक बालको को नहीं मिली है.......साथ ही ये जगह नगर निगम के क्षेत्र में आती है और चिमनी निर्माण से पहले या बाद में भी बालको ने निगम से इसके निर्माण की अनुमति नहीं ली है......इसकी वजह से कई बार यहां का काम बंद करने के लिए बालको को नोटिस भी दी गयी लेकिन निर्माण कार्य अनवरत चलता रहा.....नियमों को ताक पर रखकर अब जब ये निर्माण कार्य सैकड़ों मजदूरों की बलि ले चुका है तो विपक्ष प्रेस कांफ्रेंस कर जांच करने के लिए अपना विधायक दल गठित कर रहा है.........

अगर नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे तो ये बात पहले से ही पता थी तो विपक्ष ने हादसे के पहले ही ये मुद्दा क्यूं नहीं उठाया, अब मामले की जांच करवाकर क्या होने वाला है, मरने वाले तो मर गये.......


इससे पहले भी ठेका कंपनी जीडीसीएल सीएसईबी की ५०० मेगावाट की ईस्ट विस्तार परियोजना में भी इसी तरह की घटना को अंजाम दे चुकी है जिसमें कोल हापर का स्लैब ढहने से तीन मजदूरों की समाधि बन गयी थी और अगले ही दिन पूरा पावर प्लांट आग की भेंट चढ़ा दिया गया था....उस वक्त संजय गर्ग कलेक्टर और हिमांशू गुप्ता कोरबा के एस पी थे......उस वक्त भी कांग्रेस ने भूपेश बघेल की अगुवाई में एक विधायक दल बना कर जांच की थी और आज दो साल बीत जाने के बाद भी उस जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हो सकीहै, या ये कहें की बनी ही नहीं है........


बहरहाल किसी भी राज्य के विपक्ष का काम है राजनीति करना भले ही वो लाशों पर क्यों ना हो....तो छत्तीसगढ़ मे भी हो रहा है तो भला क्या बुरा है........


लेकिन उस बालको को कौन समझाये जो अपने मुनाफे के लिए मासूम ज़िंदगियों के साथ लगातार खिलवाड़ कर रहा है.......पहले तो बालको रे रेडमंड प्लांट ने कई गांवों को बंजर बना दिया और मवेशियों की समाधि बना दी, उसके बाद सरगुजा के मैनपाट को बाक्साइट के लिए उजाड़ दिया और अब अपने ही घर में मजदूरों की कब्र खोद दी............इस दर्दनाक घटना के बाद अब हर किसी के ज़ुबान पर बस यही है कि बालको............ये तूने क्या किया...................